काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीयविश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक १६, सन् १९१५) महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् १९१६ में वसंत पंचमीके पुनीत दिवस पर की गई थी। इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ॰ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी।
संप्रति इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर (१३०० एकड़) वाराणसी में स्थित है। मुख्य परिसर में ३ संस्थान्, १४ संकाय और १२४ विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसरमिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (२७०० एकड़) पर स्थित है। यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है।
इसके प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी है। विशाल सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुकडिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी. प्रशिक्षण केंद्र, "हिंदू यूनिवर्सिटी" नामक डाकखाना एवं सेवायोजन कार्यालय भी विश्वविद्यालय तथा जनसामान्य की सुविधा के लिए इसमें संचालित हैं। श्री सुंदरलाल, पं॰ मदनमोहन मालवीय, डॉ॰ एस. राधाकृष्णन् (भूतपूर्व राष्ट्रपति), डॉ॰ अमरनाथ झा, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ॰ रामस्वामी अय्यर, डॉ॰ त्रिगुण सेन (भूतपूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री) जैसे मूर्धन्य विद्वान यहाँ के कुलपति रह चुके हैं।
इतिहास[संपादित करें]
पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रीगणेश १९०४ ई. में किया, जब काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। १९०५ ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, १९०६ ई. में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आयी जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। डॉ॰ ऐनी बेसेंट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं। इन्हीं दिनों दरभंगा के राजा महाराज रामेश्वर सिंह भी काशी में "शारदा विद्यापीठ" की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डॉ॰ बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की १५ दिसम्बर १९११ को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर सुंदरलाल सचिव, महाराज प्रभुनारायण सिंह, पं॰ मदनमोहन मालवीय एवं डॉ॰ ऐनी बेसेंट सम्मानित सदस्य थीं। तत्कालीन शिक्षामंत्री सर हारकोर्ट बटलर के प्रयास से १९१५ ई. में केंद्रीय विधानसभा से हिंदू यूनिवर्सिटी ऐक्ट पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंज ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। १४ जनवरी १९१६ ई. (वसंतपंचमी) के दिन ससमारोह वाराणसी में गंगातट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज प्रभुनारायण सिंह द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी से सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद् वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। गांधी जी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गांधी जी ने डॉ॰ बेसेंट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में राजा-रजवाड़ों, सामंतों तथा देश के अनेक गण्यमान्य लोगों के बीच, अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें एक ओर ब्रिटिश सरकार की और दूसरी ओर हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे, देशी रियासतों के शासकों की घोर भर्त्सना की गई।
डॉ॰ बेसेंट द्वारा समर्पित सेंट्रल हिंदू कालेज में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का विधिवत शिक्षणकार्य, १ अक्टूबर १९१७ से आरंभ हुआ। १९१६ ई. में आयी बाढ़ के कारण स्थापना स्थल से हटकर कुछ पश्चिम में १,३०० एकड़ भूमि में निर्मित वर्तमान विश्वविद्यालय में सबसे पहले इंजीनियरिंग कालेज का निर्माण हुआ तत्पश्चात क्रमशः आर्ट्स कालेज एवं साइंस कालेज स्थापित किया गया। १९२१ ई से विश्वविद्यालय की पूरी पढ़ाई कमच्छा कॉलेज से स्थानांतरित होकर नए भवनों में प्रारंभ हुई। विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन १३ दिसम्बर १९२१ को प्रिंस ऑव वेल्स ने किया।
प्रमुख व्यक्तित्व
- शांति स्वरूप भटनागर,
- प्रोफ. टी आर अनंतरामन
- अहमद हसन दानी, पुरातत्व विद्वान एवं इतिहासकार.
- भूपेन हजारिका, गायक एवं संगीतकार
- लालमणि मिश्र संगीतकार
- बीरबल साहनी, पक्षी विज्ञान के विद्वान
- प्रकाश वीर शास्त्री, भूतपूर्व सांसद आर्य समाज आंदोलन के प्रणेताओं में से एक
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक एवं इतिहासकार
- रामचन्द्र शुक्ल, चित्रकार.
- जयन्त विष्णु नार्लीकर
- एम एन दस्तूरी, धातुकर्म के विद्वान
- नरला टाटा राव
- सुजीत कुमार - अभिनेता
- समीर - गीतकार
- मनोज तिवारी - भोजपुरी अभिनेता
- सी एन आर राव-वैज्ञानिक, भारत रत्न से सम्मानित
- मनोज सिन्हा-वर्तमान रेल राज्य मंत्री
माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरु जी) [आरएसएस के द्वितीव सरसंघचालक] बाबू जगजीवन राम [भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री] अशोक सिंघल [ विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष]
संस्थान
- चिकित्सा विज्ञान संस्थान
- कृषि विज्ञान संस्थान
- पर्यावरण एवं संपोष्य विकास संस्थान
- भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान
संकाय
- संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय
- संगीत एवं मंच कला संकाय
- दृश्य कला संकाय
- कला संकाय
- वाणिज्य संकाय
- शिक्षा संकाय
- प्रबन्ध शास्त्र संकाय
- विधि संकाय
- विज्ञान संकाय
- सामाजिक विज्ञान संकाय
संबद्ध महाविद्यालय
- महिला महाविद्यालय,लंका,वाराणसी
- वसंत कन्या महाविद्यालय, वाराणसी
- बसंत कॉलेज, राजघाट, वाराणसी
- डी.ए.वी. कॉलेज, वाराणसी
- आर्य महिला डिग्री कालेज, चेतगञ्ज,वाराणसी
- राजीव गांधी दक्षिणी परिसर बरकच्छा, मिर्जापुर
संबद्ध विद्यालय
- रणवीर संस्कृत विद्यालय
- केन्द्रीय हिन्दू विद्यालय, वाराणसी
- केन्द्रीय हिन्दू कन्या विद्यालय, वाराणसी
कुलगीत
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचना प्रसिद्ध वैज्ञानिकशान्ति स्वरूप भटनागर ने की थी। यह निम्नलिखित है-
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी।
- यह तीन लोकों से न्यारी काशी।
- सुज्ञान सत्य और सत्यराशी ॥
- बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥
- नये नहीं हैं ये ईंट पत्थर।
- है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर ॥
- रचे हैं विद्या के भव्य मन्दिर, यह सर्वसृष्टि की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥
- यहाँ की है यह पवित्र शिक्षा।
- कि सत्य पहले फिर आत्म-रक्षा ॥
- बिके हरिश्चन्द्र थे यहीं पर, यह सत्यशिक्षा की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥
- वह वेद ईश्वर की सत्यवाणी।
- बने जिन्हें पढ़ के सत्यज्ञानी ॥
- थे व्यासजी ने रचे यहीं पर, यह ब्रह्म-विद्या की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥
- वह मुक्तिपद को दिलाने वाले।
- सुधर्म पथ पर चलाने वाले ॥
- यहीं फले फूले बुद्ध शंकर, यह राज-ऋषियों की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥
- विविध कला अर्थशास्त्र गायन।
- गणित खनिज औषधि रसायन ॥
- प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर, यह विश्वविद्या की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥
- यह मालवीयजी की देशभक्ति।
- यह उनका साहस यह उनकी शक्ति ॥
- प्रकट हुई है नवीन होकर, यह कर्मवीरों की राजधानी।
- मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ॥

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