Wednesday, 14 January 2015

तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख

मेरे प्यारे देश वाशीयों
आज देश में एक के बाद एक रोज नए नए कांग्रेस के भ्रष्टाचार और घोटालों का खुलासा हो रहा हैं
किन्तु आज सभी राजनेती दल के नेता और घोटलेंबाज सिर्फ और सिर्फ एक ही बात कहतें हैं साबित कर के दिखाव या फिर अदालत में जावों, अदालत के दरवाजें खुले हैं.....
जानते हैं ये सब राजनेती दल के नेता और घोटलेंबाज ये क्यों कहतें है???
याद कीजिए 1993 में एक हिन्दी फिल्म आई थी उस का नाम था दामिनी और उस फिल्म में एक बहुत ही महसूर डायलोंग था तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख.....तारीख पर तारीख मिलती रही हैं लेकिन इंसाफ नहीं मिला.....इंसाफ नहीं मिला, मिली हैं तो सिर्फ ये तारीख
और यही सच्चाई हैं देश के आम आदमी और खास आदमी में
सोचए जरा! सोचए जरा!
हिन्दी फिल्म दामिनी का महसूर डायलोंग........
मि लॉर्ड तारीख देने से पहले में कुछ अर्ज करना चहुगा....
इजाजत हैं
पहली तारीख में ये कहा गया की दामिनी पागल हैं और उसे पागल खाने भेज दिया गया जहां उसे पागल बनाने की पूरी कोशिश की गई
दूसरी तारीख से पहले अस्पताल में पड़ी उर्मि का खून कर दिया गया... और केस बना ख़ुदकुशी का...जबकि मेंने इस अदालत में ये साबित कर दिया की उर्मि ने ख़ुदकुशी नहीं की उस का खून हुआ हैं...
और शेखर भी उस दिन सारा सच कहने ही बाला था की जटा साब ने फिर से अपनी चाल चल दी.....बीमारी का नाटक कर के फिर से तारीख ले ली
नहीं तो मि लॉर्ड उसी दिन इस केस का फ़ैसला हो जाता.... और आज फिर से तारीख दे रहे हैं, उस तारीख से पहले सड़क पर कोई ट्रक मुझे मार कर चला जायगा और केस बने गा रोड़ एक्सीडेंट का..आप फिर से तारीख दे देगें और उस तारीख से पहले दामिनी को पागल बना कर पागलखाने में फेख दिया जायगा....
और इस तरह न तो कोई सच्चाई के लिए लड़ने बाला रहेगा...न ही इंसाफ मागनें बाला रह जायगी तो सिर्फ तारीख और रही होता रहा हैं मि लॉर्ड
तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख.....तारीख पर तारीख मिलती रही हैं लेकिन इंसाफ नहीं मिला.....इंसाफ नहीं मिला, मिली हैं तो सिर्फ ये तारीख
कानूनों के दलालों ने तारीख को इंसाफ के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया हैं मि लॉर्ड, दो तारीखों के बीच अदालत के बहार ये कानून का धन्दा करते हैं धन्दा... जहा गवहा तोड़े जाते हैं, खरीदें जाते हैं मारें जाते हैं..... और रह जाती हैं सिर्फ तारीख.......
लोग इंसाफ के लिए अपनी जमीन जायदाद बेच कर केस लड़ते हैं और ले जाते हैं तो सिर्फ तारीख.......औरतों ने अपने गहनें जेवर यहाँ तक की मंगलसूत्र तक बेचे हैं इंसाफ के लिए.....और उन्हे भी मिली हैं तो सिर्फ तारीख.........
महीनों सालों चक्कर काटते काटते इस अदालत के कई फरियादी खुद बन जाते हैं तारीख......... और उन्हे भी मिलती हैं तो सिर्फ तारीख...
ये केस पूरे हिंदुस्तान के कमजोर और सताये हुए लोगों का हैं.....आज उन सब की नजरें आप पर गड़ी हैं आप पर की देते हैं...इंसाफ या तारीख?
अगर आप उन्हें इंसाफ नहीं दे सकते तो बंद कीजिए ये तमाशा....उखाड़ फेकिए इस कटघरों को....फाड़ दीजिए जला दीजिए इन कानून की किताबों को ताकि इंसाफ के इसे चक्कर में और लोग तव्हा न हों....बर्बाद न हों
सोचए जरा! कितनी सच्चाई हैं इस में..........
जागो भारत जागो! जागो भारत जागो!

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