Saturday, 6 June 2015

कृपया ध्यान दें-ग्रामीण क्षेत्रों के व्यक्तियों के लिए

कृपया ध्यान दें-ग्रामीण क्षेत्रों के व्यक्तियों के लिए
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1) क्या आपका ग्राम-प्रधान पढ़ा है?
2) क्या आपके गाँव में मनरेगा का कार्य सही ढंग से होता है?
3) क्या आपके गाँव में सभी बेरोजगारों को 100 दिन का रोजगार मिलता है?
4) क्या आपके गाँव में सभी का राशन कार्ड उनकी आय के अनुरूप है?
5) क्या आपके गाँव में योग्य व्यक्तियों को वृद्धा पेंशन,समाजवादी पेंशन मिलता है?
6) क्या आपके गाँव में सभी के पास शौचालय है?
7) क्या आपके गाँव में लोहिया आवास और इंदिरा आवास बिना घुश दिए योग्य लोगों को मिला है?
8) क्या आपके गाँव में सभी का वोटर कार्ड सही है?
9) क्या आपके गाँव में सफाई कर्मी बेहतर तरीके से कार्य करते हैं?
10) क्या आपके राशन की दुकान पर तेल और बाकी की चीजे जैसे गेहूं, चावल और चीनी सही दामों में मिलती है?
11) क्या आपके गाँव में नियमित रूप से सार्वजानिक मीटिंग होती है?
12) क्या आपको पता है आपके गाँव में कितना बजट किस कार्य के लिए आता है/आया है?
13) क्या वीडीओ,सचिव और ग्राम-प्रधान सभी के प्रति पारदर्शी हैं?
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यदि इनमे से अधिकतर सवालों के जबाब "ना" है तो फिर सोचिये ...
आपके गाँव का विकास कैसे होगा? 
क्या सभी गाँव को सांसद गोद लेंगे? 
फिर आप क्या कर रहे है आपने 2005 में पारित आरटीआई कानून का प्रयोग क्यों नहीं कर रहे हैं? 
तहसील दिवस में क्यों नहीं जाते है?
और सबसे अंत में जल्द ही पंचायत चुनाव होंगे निकालिए अपनी भड़ास निकालिए और चुनिये एक बेहतर ग्राम-प्रधान! क्योंकि मेरे ख्याल से विकास की सबसे छोटी इकाई है ग्राम-पंचायत और अधिकतर गलत चीजों के लिए आप खुद जिम्मेदार हैं।
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आपका 
आशुतोष सिंह कौशिक 
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Tuesday, 26 May 2015

क्या हमारा आजमगढ़ भी स्मार्ट सिटी बन पायेगा ?

क्या हमारा आजमगढ़ भी स्मार्ट सिटी बन पायेगा ?

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1) जहाँ कोई सार्वजानिक सौचालय की व्यवस्था न हो 
2) सार्वजानिक पार्किंग की व्यवस्था न हो (यदि होगा भी तो आज तक दिखा नहीं )
3) नालियाँ ढलान से ऊंचाई की तरफ बहती हों 
4) सड़कें बनाने के साथ टूटने लगती हों 
5) हर छोटी छोटी बातों पर लोग मारने मरने को तैयार हो जाते हो 
6) थूकने पर स्वतंत्रता इस कदर की है यदि आप संभल कर नहीं चलेंगे तो आपके ऊपर तक लोग थूकने से गुरेज नहीं करते 
7) जहाँ सिर्फ राजनीति पोषित हो 
8)की जनता हर साल बाढ़ से मर रही हो 
9) यदि बाढ़ से बच गए तो सुखा अवश्य जान ले लेगी 
10) जहाँ के लोग सड़क पर गाडी नहीं हवाई जहाज चलते हों 
11) यहाँ साइकिल भी मोटर साइकिल को ओवरटेक करने की माद्दा रखती हो 
12) बिना सुविधा शुल्क के कोई काम नहीं होता हो (सुविधा शुल्क मतलब ब्राइब )
13) जहाँ ताला एक से दो दिन लटका नहीं की चोरी और डकैती होते देर नहीं लगती हो 
14) यहाँ सभी यही चाहते हैं की नाली उनके घर के सामने से न निकले लेकिन उनके घरों का गन्दा पानी बहता हुआ किसी और के घर में घूस जाए 
15) कूड़ा हमेसा दुसरे के घिरे हुए प्लाट में फेंकेंगे यह सोच हो जहाँ का 
16) कूड़ेदान नहीं बनाने देंगे क्योंकि जिस सरकारी जमीन पर कूड़ेदान बनेगी वह मेरे मकान के बगल में है 
17) सफाई अभियान नहीं चलाने देंगे क्योंकि झाड़ू लगाने से धुल रोशनदान से होकर घर में आता है 
18) सबसे बड़ी बात दुसरे के काम में अडंगा जरुर लगायेंगे चाहे अपना कितना भी खर्च हो जाए ....यह सबसे बड़ी विशेषता हैं यहाँ के लोगों में .......................!!!
तो कैसे बनाये अपने सपनों का शहर " आजमगढ़" 
हो सकता है यह पोस्ट पढ़कर कुछ लोगों को शर्म आये और वे सहयोग करने को तैयार भी हो जाएँ ....
लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो मेरा एड्रेस पता कर रहे होंगे ...की छोड़ेंगे नहीं इस साले को ...!!
क्षमा चाहता हूँ ....क्योंकि हम आज़मगढ़िया हैं बिना गाली गलौज के कोई बात शुरू ही नहीं करते तो ख़तम कैसे कर दें ...!!!
धन्यवाद 

आशुतोष सिंह कौशिक

(जिला पंचायत क्षेत्र हाफिजपुर) 
             आजमगढ़

Sunday, 24 May 2015

काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में

काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
-अदम गोंडवी

मैं मजदूर हूँ

‘‘मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!, अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये,
अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से, मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा’’
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वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है
इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है
कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है
रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है
 -अदम गोंडवी

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा, तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तो
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा
सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा..............: बशीर बद्र 

Tuesday, 19 May 2015

पूर्वांचल की बेहाली पर सिर्फ उफ् उफ्...

पूर्वांचल की बेहाली पर सिर्फ उफ् उफ्...

पूर्वांचल का नाम आते ही जेहन में अपराध, अपराधी, गोली, बंदूक, राइफल, आतंक और आतंकी उभरने लगते हैं। संजरपुर, सैदपुर, आजमगढ़, गाजीपुर व मऊ दिखने लगता है। न बनारस का विद्वत मंडल न मऊ की अद्भुत रेशमी साडि़यों के ताने-बाने और न जौनपुर की शान सुनाई पड़ती है। जिला जवांर, गांव-गिरांव और कस्बे व चट्टियों के मोड़ और चौराहों पर चौतरफा अपराध व अपराधियों की चर्चा आम है। यानी, लोगों में चर्चा का विषय यही सब है। वजह जो भी हो, लेकिन सबसे बड़ी वजह है बेरोजगारी, गरीबी और बदलते परिवेश वाली शिक्षा का अभाव। कहने को कहा जाता है, सघन शिक्षालयों की भरमार है। बनारस में तीन विश्वविद्यालय और न जाने कितने महाविद्यालय हैं। पड़ोस के जौनपुर में पूर्वांचल विश्वविद्यालय, कोई २०० किमी दूर गोरखपुर विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय। इनसे जुड़े सैकड़ों की संख्या में महाविद्यालय। सब कुछ तो है। इससे इनकार कौन कर सकता है। रोजी-रोटी की जरूरत वाली शिक्षा का अभाव है। आगे बढ़ने के प्रयास अभी भी शुरु नहीं हो सका है। कुछ निजी संस्थान खुले जरूर लेकिन गुणवत्ता के स्तर पर बहुत पीछे हैं। यानी शिक्षा के स्तर पर आगे रहने वाला पूर्वांचल पिछड़ रहा है। ध्यान किसी का आखिर इस ओर क्यों नहीं है। समाज को आगे लेने जाने वाला दूसरा वर्ग राजनीतिकों का है जो गर्त में समाता जा रहा है। ग्राम प्रधानी, ब्लॉक प्रमुखी, जिला परिषदी ही नहीं विधा्यक और सांसद भी अपराधी चुने जाने लगे हैं। बड़े शान से लोगों में उन्हीं चर्चा भी होती है। अफजल, मुख्तार, उमानाथ, रमानाथ, धनंजय, हरिशंकर, शाही और न जाने कितनों के नाम हैं, जिनके नामों को चौराहों की दुकानों पर महिमामंडित किया जाता है। युवा वर्ग उन्हीं से प्रेरणा भी लेता है। बस हो गया कल्याण? गिरावट का अंदाजा लगाया जा सकता है। सभी विकास के कार्यों में परसेंट यानी हिस्सा मांगते हैं। यही उनकी हनक भी है। गिरावट इस स्तर तक पहुंच गई है, जो लोगों में घर करते जा रही है। रोकने वाला कोई नहीं है। राजनीति के मार्फत जिन्हें नेतृत्व करना था, उस पर इन अपराधियों का कब्जा है। कबीर, गौतम बुद़ध और गुरु गोरक्ष के इस पूर्वांचल में अब दुख ही दुख है। इसके माथे पर कहीं संजरपुर है तो कहीं गरीबी, बेकारी और भुखमरी का कलंक। पूर्वांचल की उपेक्षा पर यहां के लोग भी शायद ही सोचते हैं। और सोचते हैं तो फिर मन मसोस कर उसी भीड़ का हिस्सा बन जातें हैं तो इन अपराधियों का रोज सुबह-शाम महिमामंडित करती रहती है। मैं आपको पूर्वजों की गौरवगाथा सुनाकर अपना ज्ञान नहीं परोसना चाहता, जिससे शायद सभी परिचित हैं। ब्यूरोक्रेशी में अपनी मजबूत पैठ के बूते हम पूरे देश में जाने जाते थे। अपने ज्ञान-विज्ञान के लिए। लेकिन अब तो हालात बिगड़े नहीं बल्कि बदतर हो गये हैं। गरीबों की एक बड़ी फौज रोजाना ट्रेन में लदकर दिल्‍ली, मुम्‍बई, कलकत्‍ता अथवा हरियाणा के शहरों की ओर रुख कर देते हैं। लेकिन वहां भी दुख ही उठाते हैं। लेकिन यह दुख तब और बढ जाता है जब परदेस गये युवा एड़स लेकर लौटते हैं। उनकी ही नहीं बल्कि युवा पत्नियों की जवानी तिल-तिल कर मरने लगती है।यह सब क्‍यों हुआ। सवालों का ढेर आज बस पूर्वांचल के दुखों को और बढ़ा रहा है, जिसका जवाब भला कौन देगा? वो नेता जो पूर्वांचल के अलग राज्य की मांग रख रहे हैं? झूठ-फरेब और झूठ.....। झांस में तो आ चुका है पूर्वांचल। अपराधियों के, धूर्त और मूर्ख राजनीतिकों के। इससे जाल बट्टे से निकलने में भी बड़े पेंच हैं।